स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं की कमी, पंजाब सरकार को 15 दिसम्बर तक देना होगा जवाब

चंडीगढ़ : पंजाब में सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं और शिक्षकों की भारी कमी को लेकर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने गंभीर रुख अपनाया है। अदालत ने इसे जनहित का मामला मानते हुए संज्ञान लेकर पंजाब सरकार को नोटिस जारी किया है और शिक्षा सचिव से 15 दिसम्बर तक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस संजीव बेरी की खंडपीठ ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान यह आदेश जारी किया। यह संज्ञान एकल बैंच के सामने आए स्कूलों से जुड़े 2 मामले की सुनवाई पर लिया गया। एकल बैंच ने इस मामले में शिक्षा विभाग से राज्य के सभी सरकारी मिडिल स्कूलों की वास्तविक स्थिति पर जानकारी मांगी है। कोर्ट ने शिक्षा सचिव को हलफनामे के माध्यम से 10 बिंदुओं पर जवाब देने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने पूछा, क्या ये स्कूल भारत में हैं या अफगानिस्तान में? अदालत ने पूछा है कि कितने मिडिल स्कूल ऐसे हैं, जिनमें 5 से कम कमरे हैं या जहां नियमित प्रधानाध्यापक और पर्याप्त शिक्षक तैनात नहीं हैं। साथ ही यह भी बताने को कहा गया है कि किन स्कूलों में छात्रों, छात्राओं और स्टाफ के लिए अलग-अलग शौचालय नहीं हैं। कोर्ट ने पूछा कि क्या ऐसे स्कूलों में स्वच्छ पेयजल की सुविधा, सफाई कर्मी और शौचालय सफाई सामग्री के लिए धनराशि उपलब्ध करवाई गई है या नहीं। इसके अलावा कोर्ट ने उन स्कूलों की सूची मांगी है जहां वर्तमान शैक्षणिक सत्र में 50 से कम छात्रों का नामांकन हुआ है और पूछा कि सरकार ने नामांकन बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए हैं। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि उन माध्यमिक विद्यालयों का विवरण पेश किया जाए जहां खेल का मैदान नहीं है या छात्राओं के लिए नैपकिन वैंडिंग मशीन लगाने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। एकल बैंच ने इस मामले में सुनवाई के दौरान कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा था कि क्या ये स्कूल भारत में हैं या अफगानिस्तान में?
 मामला
यह संज्ञान एक याचिका के दौरान लिया गया, जिसमें शिक्षक विक्रमजीत सिंह ने शिकायत की थी कि उनका तबादला होने के बावजूद उन्हें रिलीव नहीं किया जा रहा। उन्होंने बताया कि अमृतसर जिले के गांव तपिला के सरकारी मिडिल स्कूल में वह अकेले शिक्षक हैं। स्कूल में छठी से 8वीं तक की 3 कक्षाओं के लिए केवल एक ही कमरा है। छात्रों के लिए सिर्फ 2 शौचालय हैं और शिक्षकों के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं है। याचिका में बताया गया कि स्कूल में कोई प्रधानाध्यापक नहीं है और किसी अन्य कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय की प्रधानाचार्या को अतिरिक्त कार्यभार दिया गया है। वह पहले से ही ब्यास स्थित एक और स्कूल की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। अदालत ने कहा कि शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों की ऐसी उपेक्षा स्वीकार्य नहीं है और राज्य सरकार को जल्द ठोस कदम उठाने होंगे।

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